दो फिल्मे बैक टू बैक । आइडिया बुरा नहीं था । बस सुबह उठना पड़ा । उससे पहले फिल्म के टिकट रात को ही बुक करने पड़े। तो वीकेंड पर दो फिल्में ऐसे ही देखी । एयरलिफ्ट पहले शो में बाद में साला खड़ूस । पहली फिल्म की तारीफें सुन रखीं थी और दूसरी मैं देखकर तय करना चाहती थी कि फिल्म कैसी है । पहली फिल्म एवरेज और दूसरी एवरेज से भी नीचे । दो अलग कहानियां उन कहानियों में उलझे किरदार और उनकी कशमकश को सुलझाता जुदा जुदा स्क्रीन प्ले । सब कुछ अलग कुछ साम्य नहीं सिर्फ एक बात
और वो ये कि बने बनाए...रटे रटाए एक लीक पर चलते सिस्टम में कई बार कुछ कलपुर्जे अलग वजूद अख्तियार कर लेते हैं जैसे किसी पेड़ के इर्द गिर्द उमजा एक नन्हा पौधा जो वक्त आने पर कई ऐसे काम आने लगता है जैसे कभी वो बड़ा पेड़ आया करता था एयरलिफ्ट कहानी है एक कुवैत में हुए एक एवैक्यूएशन ऑपरेशन की जिसको लेकर विवाद खूब हुए कि सरकार की भूमिका सही तरीके से नहीं दिखाई गए ...वगैरह वगैरह । वहीं दूसरी कहानी है स्पोर्टस में फैले भ्रष्टाचार और दूसरी गंदगियों के बीच धुन के पक्के,काम के
माहिर दो स्पोर्टसपर्सन्स की । जिसमें एक मुख्य किरदार को साला खडूस के नाम से दुनिया जानती है ।ठीक है वो खड़ूस है क्योंकि वो सच्चा है उसमे मिलावट नहीं । जब इंसान किसी हुनर को ज़िंदगी मान बैठता है और अपने काम को दुनिया तो वो बाकी दुनिया के लिए खडूस हो जाता है । क्योंकि ये दोनों धाराएं अलग-अलग चलती हैं । ट्रैक एक ही होता है और उस पर ही नज़र जमाए रखने के लिए हुनर को इबादत बनाना होता है और इसके लिए बाहर का दुनियावी मुलम्मा उतारना पड़ता है । इसी लिए कोई कोई शख्स इस टाइटल से नवाज़ा जाता है साला खडूस । वहीं कुछ-कुछ यही बात दूसरी कहानी पर भी लागू होती है । हर सिस्टम
में चाहे देश काल कोई भी हो कुछ लोग (चाहे उन सरोकारों से उनका सीधा राब्ता भी न हो ) अलग चलते हैं ..सही लीक पर चलते है लकीर के फकीर नहीं बनते और ऐसे ही लोग सिस्टम के वाकई चलने के लिए भी ज़िम्मेदार हैं । जैसे की फिल्म एयरलिफ्ट में में ज्वाइंट सेक्रेटरी का काल्पनिक किरदार । ऐसे अनसंग,अनहर्ड हीरोज की तरह जिन्हें वाकई किसी वाहावाही या तारीफ की जरुरत तक नहीं होती । वो हैं क्योंकि अच्छाई का वजूद है । तो ये वही खडूस है जिनके दम पर सिस्टम खुद के होने का दम भरता है ।
और वो ये कि बने बनाए...रटे रटाए एक लीक पर चलते सिस्टम में कई बार कुछ कलपुर्जे अलग वजूद अख्तियार कर लेते हैं जैसे किसी पेड़ के इर्द गिर्द उमजा एक नन्हा पौधा जो वक्त आने पर कई ऐसे काम आने लगता है जैसे कभी वो बड़ा पेड़ आया करता था एयरलिफ्ट कहानी है एक कुवैत में हुए एक एवैक्यूएशन ऑपरेशन की जिसको लेकर विवाद खूब हुए कि सरकार की भूमिका सही तरीके से नहीं दिखाई गए ...वगैरह वगैरह । वहीं दूसरी कहानी है स्पोर्टस में फैले भ्रष्टाचार और दूसरी गंदगियों के बीच धुन के पक्के,काम के
माहिर दो स्पोर्टसपर्सन्स की । जिसमें एक मुख्य किरदार को साला खडूस के नाम से दुनिया जानती है ।ठीक है वो खड़ूस है क्योंकि वो सच्चा है उसमे मिलावट नहीं । जब इंसान किसी हुनर को ज़िंदगी मान बैठता है और अपने काम को दुनिया तो वो बाकी दुनिया के लिए खडूस हो जाता है । क्योंकि ये दोनों धाराएं अलग-अलग चलती हैं । ट्रैक एक ही होता है और उस पर ही नज़र जमाए रखने के लिए हुनर को इबादत बनाना होता है और इसके लिए बाहर का दुनियावी मुलम्मा उतारना पड़ता है । इसी लिए कोई कोई शख्स इस टाइटल से नवाज़ा जाता है साला खडूस । वहीं कुछ-कुछ यही बात दूसरी कहानी पर भी लागू होती है । हर सिस्टम
में चाहे देश काल कोई भी हो कुछ लोग (चाहे उन सरोकारों से उनका सीधा राब्ता भी न हो ) अलग चलते हैं ..सही लीक पर चलते है लकीर के फकीर नहीं बनते और ऐसे ही लोग सिस्टम के वाकई चलने के लिए भी ज़िम्मेदार हैं । जैसे की फिल्म एयरलिफ्ट में में ज्वाइंट सेक्रेटरी का काल्पनिक किरदार । ऐसे अनसंग,अनहर्ड हीरोज की तरह जिन्हें वाकई किसी वाहावाही या तारीफ की जरुरत तक नहीं होती । वो हैं क्योंकि अच्छाई का वजूद है । तो ये वही खडूस है जिनके दम पर सिस्टम खुद के होने का दम भरता है ।
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