गुरुवार, 24 नवंबर 2016

भीतर के क्लॉड इथरली को जिंदा रखें

क्लॉड ईथरली कौन है। शोर शराबे की मार्का बेइमानगिरी में ईमान का मर्ज है क्लॉड ईथरली । ये वो बीमारी है अगर लग जाए को तो आदमी बेकार हो जाता है। वो किसी के काम का नहीं रहता । ना खुद का। ना परिवार का और ना ही समाज का । मर्ज अगर ज्यादा बिगड़ जाए तो जगह सिर्फ दिमाग का इलाज करने वाले अस्पतालों और पागलखानों में ही मिल सकती है ।

तो भई अब पूछा जाएगा कि जिस मर्ज का इतना जिक्र हो गया उसका आगा पीछा , हिंदी नाम वाम भी तो पता चले । क्लॉड ईथरली दरअसल मुक्तिबोध की वो कहानी है जिसमें वो इंसाफपसंद बेचैनी को इतिहास के एक कैरेक्टर के जरिए पल्ले पड़ाने की जुगत लगाते हैं ।


मर्ज है कि कहानी है, नाम तो किसी इंसान का लग रहा है । सही है दरअसल क्लॉड इथरली दरअसल एक वास्तविक दुनिया के वास्तविक शख्स का ही नाम है। जिसकी कहानी कुछ अवास्तविक से पड़ावों से होकर गुजरी ।  दरअसल क्लॉड ईथरली वो ही शख्स था जिसने अमेरिका के लिए हीरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बरसाए थे । कहने को तो वो देश का काम कर रहा था। दुश्मनों के खिलाफ़ अपने देश के लिए महान काम कर रहा था लेकिन इस राष्ट्रभक्ति  के काम ने उसकी अंतरात्मा में ऐसा लोचा पैदा कर दिया जिसने मरते दम तक  उसका पीछा ना छोड़ा । अपनी आत्मा की बेचैनी से छुटकारा पाने के लिए और वॉर हीरो की इमेज तोड़ने के लिए उसने क्या क्या ना किया । युद्ध से प्रभावित हुए बच्चों की मदद की, छोटे मोटे
उठागिरी टाईप अपराध भी किए लेकिन कोकुछ काम नहीं आया । आत्मा पर आए इस बोझ ने उसके व्यक्तित्व को कहीं भीतर कुचल ,दिया वो मानसिक संतुलन खो बैठा और 1978 में उसकी मौत हो गई ।

आत्मा की बेचैनी के कई प्रकार भी होते हैं ...सबसे खतरनाक प्रकार की स्टेज क्लॉड इथर वाली होती है । इसलिए इंसान को चाहिए कि किसी भी इज्म को खुद पर इतना ना हावी होने दे कि उस वैचारिक जमीन पर पागलपन के पौधे उगने लगें ।
अपने भीतर के ज़मीर यानि क्लॉड इथरली को जिंदा रखें । तभी दिल और दिमाग दोनों स्वस्थ रह पाएंगे ।







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