एक किस्सा सुनिए----कोटा में डॉक्टरी का कंपीटिशन पास करने के लिए कोचिंग क्लासेस लेने बिहार से आया एक लड़का मानसिक दबाव में रहने लगा . माता पिता की ख्वाहिश थी कि वो डॉक्टर बने ,लिहाज़ा लड़के को कोटा भेजा कि कंपीटिशन पास करे और डॉक्टर बने......। लेकिन क्लास पर क्लास और रट्टेबाज़ी की संस्कृति में वो कहीं न कहीं खुद को अनफिट पा रहा था । नतीजा ये कि पढ़ाई का दबाव माता-पिता की इच्छा पर भारी पड़ा और लड़का मानसिक तनाव में रहने लगा । बेटे की बिगड़ी मानसिक हालत के बारे में जब माता-पिता को मालूम पड़ा तो भागे-भागे बिहार से आए और बेटे को मनोचिकित्सक के पास ले गए । थेरेपी के दौरान लड़के ने मनोचिकित्सक को बताया कि वो तो डॉक्टर बनना ही नहीं चाहता , मां बाप का दबाव था इसलिए कोटा आया, क्लासेस लेनी शुरु भी की ,लेकिन मन का कोई क्या करे लाख चाहकर भी वो कंपीटिशन की रेस में फर्राटे से भाग नहीं पा रहा था और धीरे धीरे खुद को पिछड़ता महसूस कर रहा था । वो तो गनीमत थी कि वक्त से पहले उसे मनोचिकित्सक के पास ले जाया गया, वरना डॉक्टर बनने का बोझ कब गले का फंदा बन उसकी जान ले लेता कोई नहीं जानता था ।
कोटा में इस तरह की कहानियां अपने कहीं ज्यादा दुखद परिणामों के साथ अखबार की सुर्खियों की शक्ल में दिख जाती हैं । सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2015 में अब तक यहां के कोचिंग संस्थानों में पढ़ने वाले 11 छात्र खुदकुशी कर चुके हैं । इनमें से ज्यादातर ऐेसे हैं जो पढ़ाई के दबाव के आगे हार मान बैठे और जिंदगी का खात्मा कर लिया ।
हैरानी इस बात पर है कि बच्चों के जरिए मां-बाप की अपने सपने पूरे करने की जिद बच्चों की जिंदगी पर ही भारी पड़ रही है । ये बीमारी हर फील्ड में आ गई है और इस घेरे में बचपन की मासूमियत अनजाने ही रौंदे जा रही है । कभी आपने गौर किया है कि ये इंडियन आइडल ,मास्टरशेफ,इंडिया हैज़ गॉट टैलेंट
में बच्चों के सेलेक्ट न होने पर बुक्का फाड़ कर रोने वाले और जजों की जजमेंट पर ही सवाल उठाने वाले ये लोग कौन हैं जो बच्चों की क्षमताओं को रबड़ की तरह खींचते हैं । क्या ये माता-पिता नहीं जानते कि बचपन को बांधा नहीं जाना चाहिए ,उनके भीतर की क्रिएटिविटी को सिर्फ बहने देना चाहिए ।
बच्चों का मार्गदर्शन करने ,प्रोत्साहित करने , ज़िंदगी की नई राह दिखाने में, और उन पर आकांक्षाओं की गठरी डाल देने में फर्क है , माता-पिता को इस महीन लाईन के बारे में समझना होगा । ये समझना होगा कि बचपन उस स्वच्छंद नदी की तरह होना चाहिए ,जिसमें सहज लयात्मक बहाव हो न कि ठहराव ।
इंडियन आइडल में एक 5 साल का बच्चा जजेस से बार बार खुद को सेलेक्ट करवाने के लिए शिद्दत से कहता रहा , जज के समझाने के बावजूद वो स्टेज से वापस नहीं गया । पूछने पर उसने बताया कि वो पिछले साल भी ऑडिशन के लिए आया था और फेल हो गया था , इस बात को लेकर उसके पिता ने साल भर न सिर्फ
सुनाया बल्कि ऑडिशन में आने से पहले ये भी ज़ोर देकर कहा था.....कि देखो इस बार जीत के आना
और हां जिस लड़के का जिक्र पोस्ट शुरु होने के वक्त किया था,वो डॉक्टर नहीं लालू प्रसाद यादव बनना चाहता था ।
कोटा में इस तरह की कहानियां अपने कहीं ज्यादा दुखद परिणामों के साथ अखबार की सुर्खियों की शक्ल में दिख जाती हैं । सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2015 में अब तक यहां के कोचिंग संस्थानों में पढ़ने वाले 11 छात्र खुदकुशी कर चुके हैं । इनमें से ज्यादातर ऐेसे हैं जो पढ़ाई के दबाव के आगे हार मान बैठे और जिंदगी का खात्मा कर लिया ।
हैरानी इस बात पर है कि बच्चों के जरिए मां-बाप की अपने सपने पूरे करने की जिद बच्चों की जिंदगी पर ही भारी पड़ रही है । ये बीमारी हर फील्ड में आ गई है और इस घेरे में बचपन की मासूमियत अनजाने ही रौंदे जा रही है । कभी आपने गौर किया है कि ये इंडियन आइडल ,मास्टरशेफ,इंडिया हैज़ गॉट टैलेंट
में बच्चों के सेलेक्ट न होने पर बुक्का फाड़ कर रोने वाले और जजों की जजमेंट पर ही सवाल उठाने वाले ये लोग कौन हैं जो बच्चों की क्षमताओं को रबड़ की तरह खींचते हैं । क्या ये माता-पिता नहीं जानते कि बचपन को बांधा नहीं जाना चाहिए ,उनके भीतर की क्रिएटिविटी को सिर्फ बहने देना चाहिए ।
बच्चों का मार्गदर्शन करने ,प्रोत्साहित करने , ज़िंदगी की नई राह दिखाने में, और उन पर आकांक्षाओं की गठरी डाल देने में फर्क है , माता-पिता को इस महीन लाईन के बारे में समझना होगा । ये समझना होगा कि बचपन उस स्वच्छंद नदी की तरह होना चाहिए ,जिसमें सहज लयात्मक बहाव हो न कि ठहराव ।
इंडियन आइडल में एक 5 साल का बच्चा जजेस से बार बार खुद को सेलेक्ट करवाने के लिए शिद्दत से कहता रहा , जज के समझाने के बावजूद वो स्टेज से वापस नहीं गया । पूछने पर उसने बताया कि वो पिछले साल भी ऑडिशन के लिए आया था और फेल हो गया था , इस बात को लेकर उसके पिता ने साल भर न सिर्फ
सुनाया बल्कि ऑडिशन में आने से पहले ये भी ज़ोर देकर कहा था.....कि देखो इस बार जीत के आना
और हां जिस लड़के का जिक्र पोस्ट शुरु होने के वक्त किया था,वो डॉक्टर नहीं लालू प्रसाद यादव बनना चाहता था ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें