एरिन ब्रोकोविच.....कुछ साल पहले आई इस फिल्म ने न सिर्फ टिकट खिड़की पर अच्छी खासी कमाई की थी बल्कि फिल्म की अभिनेत्री जूलिया रॉबर्ट्स को बेस्ट अभिनेत्री का ऑस्कर दिलाया था ।
फिल्म की कहानी तीस पार की एक ऐसी महिला की थी जिसे अमेरिकी समाज में आम महिला कहा जा सकता है । दो बार तलाक,तीन बच्चे और कोई रेगुलर जॉब नहीं । कुल मिलाकर एरिन एक आम अमेरिकी की कहानी है, जिसमें नया मोड़ तब आता है जब वो एक लीगल फर्म में बतौर क्लर्क काम करते हुए अपनी पड़ताल के ज़रिए एक बड़ी कंपनी को घुटने टेकने पर मजबूर कर देती है । दरअसल एरिन की पड़ताल दुनिया के सामने ये सच लेकर आती है कि पैसिफिक एंड इलेक्ट्रिक कंपनी के प्लांट्स ने ने एक पूरे शहर के पानी को 30 सालों तक खतरनाक ढंग से जहरीला बनाया । नतीजतन एरिन की फर्म अमेरिकी इतिहास का सबसे बड़ा मेडिकल लीगल सेटलमेंट का केस जाती है । ये अलग बात है कि केस की कामयाबी और पैसे के एंगल को लेकर आलोचनाएं भी हुईं ।
एरिन का वाक्या इसलिए याद आया कि उसकी साधारण सी दिखने वाली ज़िंदगी में अगर कुछ खास था तो उसकी हिम्मत , लड़ने की बगैर ये सोचे कि सामने वाला कितना शक्तिशाली है और उसके मुकाबले उसके खुद का अस्तित्व क्या है ....। क्या आखिर में उसे जीत हासिल होगी की नहीं ? यानि एक चीज़ जो महत्वूर्ण रह गई वो है लड़ने का जज्बा । जो न खुद के अभावों की परवाह करता है ना दुनियादारी के तकाज़े का ।
ऐसी कहानियां गाहे बगाहे आपकी ज़िंदगी में आती जाती रहती हैं और आप पर एक अमिट छाप छोड़ जातीं हैं । एक ऐसी ही कहानी है भोपाल के राजेश की , इस शख्स ने देश के सबसे बड़े बैंक के खिलाफ़ केस लड़ा और जीता भी महज पांचवीं तक पढ़े राजेश की हिम्मत के आगे एसबीआई के वकीलों की ऊंची तालिम बेकार ही साबित हुई । दरअसल बात 2011 की है जब राजेश को मालूम पड़ा कि उसके बैंक अकाउंट से 9200 रुपये गायब हैं , जबकि पैसा उन्होने निकाला ही नहीं था
इसके बाद राजेश ने वहीं किया जो अमूमन कोई भी आम आदमी करता है,अकाउंट में गड़बड़ी की शिकायत लेकर वो बैंक अधिकारियों के पास पहुंचे तो वहां से भगा दिेए । लेकिन हार तब भी न मानीं बात मुंबई स्थित मुख्यालय में भी पहुंचाई गई लेकिन बात न बनी ,आख्रिर राजेश ने शिकायत डिस्ट्रिक कंज्यूमर फोरम में दर्ज कराई। वकील करने के पैसे तो थे नहीं लिहाज़ा खुद ही अपना पक्ष कोर्ट के सामने रखा । कई सुनवाईयों के बाद फैसला राजेश के हक में गया । इतना ही नहीं कोर्ट ने आदेश दिया कि वो 6 फीसदी ब्याज़ के साथ उसकी खोई रकम अकाउंट में डाले । और ग्राहक को मानसिक तनाव देने के आरोप में बैंक 10 हजार अलग से दे ।
कहानियां दो हैं लेकिन सबक एक । हिम्मत का सबक । एरिन और राजेश की कहानियों का देशकाल, केस सबकुछ अलग है । लेकिन एक बात जो कॉमन है वो है उनकी हिम्मतभरी सोच. जहां तक रोटी-रोजी के ख्यालों से दोचार होता आम ज़िंदगी की आम परेशानियों से रोजाना जूझ रहा शख्स सोच नहीं पाता । खुद से जुड़े सच और दूसरे पक्ष से जुड़े झूठ को वो देखने की कोशिश तो करता है , लेकिन मुश्किलात और दुनियावी समझदारी के आगे वो तस्वीर धुंधली हो जाती है । सबसे बड़ी हार यहीं से शुरु होती है । जिस सच को आप खुद नहीं देख पाते तो उसे दूसरों को कैसे दिखाएंगे ।
बस राजेश और एरिन जैसे लोगों और दूसरे आम लोगों में यही फर्क है
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