मंगलवार, 21 जुलाई 2015

बस्सी साहब के नाम खुली चिट्ठी

सुना है बस्सी साहब और केजरीवाल की मुलाकात में आनंद पर्बत वाली घटना का ज़िक्र हुआ तो बस्सी साहब ने तर्क दिया था कि लड़की ने लड़के को प्रवोक किया था ।

कमिश्नर साहब

बस्सी साहेब आप दिल्ली पुलिस के मुखिया हैं । आप के पास तो गल्ली मुहल्ले में हो रहे जुर्म से लेकर देश के बड़े -बड़े अपराधों से जुड़ी तमाम छोटी बड़ी जानकारियां होतीं होंगीं । अगर आप कह रहे हैं तो मान लेते हैं कि 35 बार चाकू के वार सहने वाली मीनाक्षी ने  ज़रुर लड़के को प्रवोक किया होगा । ये भी कोई बात हुई कि आप किसी के मुंह पर थूक दो .... फिर जवान जहान लड़के तो गर्म खून के होते ही हैं .. गुस्से में लड़की को मज़ा चखा दिया । बिल्कुल सही इस बात की तस्दीक तो मुलायम सिंह भी कर चुके हैं कि लड़कों से तो गलतियां हो ही जाया करती हैं ... .फिर चाहे वो छोटी-मोटी छेड़खानी हो या फिर रेप की वारदात । आपके लिए,आपके साथ सदैव का नारा भले ही दिल्ली पुलिस का हो ...लेकिन आन्ध्र की पुलिस भी लड़कियों की भलाई की कम चिंता थोड़े ही करती है । याद है ना   आन्ध्रप्रदेश के एक डीजीपी ने भी कुछ साल पहले लड़कियों  को याद दिलाया था कि वो अगर छो्टे औऱ भड़काऊ कपड़े पहनेंगी और फिर रोएंगी कि लड़कों ने छेड़ दिया तो ऐसे नहीं चलेगा । कहीं ज़िम्मेदारी तो लड़कियों को भी लेनी होगी । सही बात है पहले लड़कियां भड़काऊ कपड़े पहन उकसाएं और उसके बाद पुलिस मामलों को संभालती चले ..ये क्या बात हुई । बात पुरानी नहीं है बस्सी साहब को भी शायद याद हो ....कि निर्भया केस में अपराधियों के वकीलों ने भी तो सही याद दिलाया था कि अगर आप गैर लड़के के साथ रात में फिल्म देख कर वापस आती हैं तो ऐसी घटनाओं की आशंका बढ़ जाती है  । अपराधी मुकेश भी तो ठीक ही कह रहा था कि अगर वो जज्बाती बेवकूफ लड़की 16 दिसंबर की रात उस सब का विरोध न करती जो उसके साथ हो रहा था तो शायद आज ज़िंदा होती ।

ये लड़कियां भी कितनी बेवकूफ होती हैं ...क्यों आखिरकार विरोध करती हैं...क्यों आवाज़ उठाती हैं....क्यों नहीं चुपचाप सारी चीज़ें जब्त कर ले जाती हैं । मुहल्लों में लफंगों की सीटियां और गंदी नज़रों में भी बुरा मानने जैसा क्या है ....।  कोई गुंडा बस या ट्रेन में बदतमीज़ी करे तो इसमें भी कुछ खराबी नहीं कुछ देर बात खुद ही चुप हो जाएगा । इज्जत पर हाथ डालने वाले भी क्या खास बिगाड़ लेंगे ... आखिर उसके बाद भी ज़िंदा तो रह पाएंगी ...इज्जत चाहे या रहें क्या फर्क पड़ता है जान तो रहेगी । प्रवोक करने का क्या मतलब है । चुप रहने में ही भलाई है । समझती नहीं तभी तो जान से जाती हैं ।बड़े और अनुभवी लोगों की बातें न सिर्फ माननी चाहिए बल्कि उन पर सवाल भी नहीं करने चाहिए ...।  मसलन कोई इन सभी लोगों  से पूछे कि गुड़िया रेप केस में
उस छोटी बच्ची ने आरोपी को कैसे प्रवोक किया होगा... या फिर 3 साल से लेकर 80 साल तक की पकी उम्र की महिला के साथ छेड़खानी , हत्या रेप जैसे मामलों में कौन-कौन कब छोटे कपड़े पहन अपराध के लिए उकसाता होगा ।  गलती बस्सी साहेब या मुलायम या आन्ध्र के उस डीजीपी की नहीं है जो ऐसा सोचते हैं । दरअसल महिलाओं को लेकर असमान और कमतरी की दरिद्र  सोच इस देश के डीएनए में है जिसे बदला नहीं जा सकता । इसलिए बस्सी साहब मैं मानती ही नहीं हूं बल्कि इन सारे सुझावों पर अमल भी करती हूं । सही में दिल्ली में अगर ज़िंदा रहना है तो प्रवोक करना खतरे से खेलना नहीं ।अपनी सुरक्षा
अपने हाथ ।

निवासी दिल्ली





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