गुरुवार, 9 जुलाई 2015

वो कौन थीं ?



झाड़ियों के पीछे झुरमुट में से एकाएक निकला वो चेहरा आँखों में ऐसा अटका कि कार के साथ मेरी आँखें भी वहां के मंज़र से गुज़र गई,  लेकिन ज़हन उसी झाड़ी के पास रह गया ।
 रात 12.30 बजे  का वक्त , न्यूज़ चैनल की ईवनिंग शिफ्ट निपटाकर घर लौट रही थी । रोज़ाना ट्रक -टम्पो की धुंआ छोड़ती कतार की भूलभुलैया के बीच में से कालिंदी कुंज के पुल से निकलना किसी चुनौती से कम नहीं रहता था ,ऐसे में उस दिन मैं और ड्राइवर दोनों खुश  थे कि चलो आज वक्त पर घर पहुंचेंगे....ट्रकों की भीड़ कम थी । ऐसे में जैसे लाल बत्ती पार कर आगे की ओर गाड़ी मुडी तो उस घुमावदार मोड़ के किनारे पर चार ऐसे चेहरे नज़र आए जो पहली नज़र में कोई देख ले  तो भूत समझ डर ही जाए । काली रात के स्याह अंधेरे में बेतहाशा पाऊडर की सफेदी से झक सफेद किए लड़कियों के चेहरे  , वो चारों एक झुंड बनाए बैठी थीं जैसे कि स्कूल कॉलेज में लड़कियां खेल के पीरियड में बातें करनी बैठ जाती हैं ।

18-20 साल की उम्र की वो लड़कियां जिनके चेहरों को भूतिया सफेदी और नकली जे़वरात की चमक रात के उस अंधेरे को  ऐसे चुंधिया दे रही थी कि देखने वाला एक पल के लिए हतप्रभ ही हो जाए कि क्या देख लिया ।  सबकुछ आंखों में खटक रहा था और ज़हन में  भी खटक ही गया

खैर हाव-भाव और वो चमक देख इतना समझ आ ही गया कि रात के उस पहर वो लड़कियां वहां क्यों बैठी थी ... कौन थी वो....कहां रहती थी.....ऐसे जाने कितने ही सवाल मेरे जहन में रात भर गुज़रते रहे ।  ये बात उस रास्ते की है जहां.... पर रात के वक्त ट्रक और टैम्पो ही ज्यादा गुज़रते हैं ।  या फिर देर रात ऑफिस की पाली कर घर वापस जाने वाले लोग.... इससे पहले मैंने ऐसी जगहों के बारे में सुना ही था कि फलां फलां जगह हैं जहां लड़कियां  पिक अप प्वाइंट पर खड़ी होती है,लेकिन जब पहली बार ऐसा कुछ देखा तो दिल और दिमाग सुन्न हो गया ।
ऐसी ज़िंदगी आखिर कौन चाहता होगा .... शायद कोई इनसान नहीं । जो लोग ये तर्क देते हैं कि  कुछ लोग लक्ज़री के लिए ऐसी ज़िंदगी का चुनाव करते हैं वो इन लड़कियों के मामले में तो गलत ही हैं ....सरासर । जगह का चुनाव बताता है कि मसला  लक्ज़री की चाह का नहीं ।

वरना कौन आधी रात में अजीब ढंग से सजसंवर कर निकलेगा , रास्ते के उस बदनाम मोड़ पर  इंतज़ार करेगा । ये यकीनन मजबूरी है .. । उस रात उन लड़कियों के नकली चेहरे पर जो हंसी दिख रही थी वो उनके चेहरे पर पुती लाली की ही तरह भद्दी और नकली थी । बेहद नकली । लेकिन इस दृश्य ने ज़िंदगी का जो चेहरा दिखा दिया एकदम असल था । गंदा और भयावह ।

वहीं नजर वहां से हट  गाड़ी  के पीछे वाली सीट पर पड़ी जहां..... कल के अखबार के सिटी पेज का चमकीला सा पन्ना पड़ा था । उस पर सेल्फी विद डॉटर कॉटेस्ट के विनर का चेहरा छपा  था ....हेडिंग थी बेटी बचाओ ...बेटी पढ़ाओ....। मन जाने कैसा सा हो गया


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